इतिहास में दर्ज हो गया इस बोन मैरो दानकर्ता महिला का नाम

इतिहास में दर्ज हो गया इस बोन मैरो दानकर्ता महिला का नाम

सेहतराग टीम

कोई भी मां बाप अपने बच्‍चे को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं मगर किसी दूसरे के बच्‍चे के लिए यही भावना मुश्किल से ही देखने को मिलती है। मगर ये भारत है, यहां दूसरों के बच्‍चे को भी अपना समझने वालों की कोई कमी नहीं है। तमिलनाडु में ऐसी ही एक महिला ने तीन महीने की बच्‍ची की जिंदगी बचाने के लिए अपना बोन मैरो दान करने में हिचक नहीं दिखाई।

तमिलनाडु की इस महिला ने परिवार के दबाव के बावजूद अपना बोन मैरो गंभीर ऑटोइम्यून बीमारी से पीड़ित तीन महीने के एक बच्चे को दान किया है। ऐसा करके ये महिला देश की पहली ऐसी बोन मैरो डोनर बन गई है जिन्‍होंने किसी गैर संबंधी को बोन मैरो यानी अस्थि मज्जा दान किया है। विडंबना ये है कि खुद इस महिला की बेटी गंभीर रक्त विकार ‘थैलेसीमिया मेजर’ से पीड़ित है।

डॉक्‍टरों के अनुसार कोयंबटूर के पास मुधालीपलायम गांव की रहने वाली 26 वर्षीय मसीलामणि से मिले बोन मैरो को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रहने वाले बच्चे में इस वर्ष जनवरी में प्रतिरोपित किया गया।

बच्चा अभी भी अस्पताल में है लेकिन चिकित्सकों को विश्वास है कि अब वह जीवन की जंग जीत जाएगा क्योंकि अगर उसका शरीर अस्थि मज्जा स्वीकार नहीं करता तो कुछ ही दिन में उसकी मृत्यु हो चुकी होती। 

मसीलामणि ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘मेरा मानना है कि मैं धन्य हूं। मैं एक बच्चे को बचाने के लिए समाज की गलत धारणा तोड़ने में सफल रही। मुझे महसूस हो रहा है कि मैं बच्चे की मां हूं। मैं कहूंगी कि वह मेरा बच्चा भी है क्योंकि अब मैंने उसे जीने का दूसरा मौका दिया है। मैं सर्वशक्तिमान परमात्मा से प्रार्थना करती हूं कि वह जल्द स्वस्थ हो और अब कभी बीमार ना पड़े। उसे स्वस्थ होना चाहिए।’ 

मसीलामणि की पुत्री ‘थैलेसीमिया मेजर’ की मरीज है। यह एक गंभीर रक्त विकार होता है जिसमें हेमोग्लोबिन के निर्माण में बार बार गिरावट आती है। इससे पीड़ित को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है।

मसीलामणि का विवाह 20 वर्ष की आयु में आर. कविरासन से हुआ था। उसने बताया कि विवाह के वर्ष भर के भीतर मेरी पुत्री का जन्म हुआ और कुछ महीने बाद ही उसके थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित होने का पता चला। हम दोनों पति पत्नी ने अपने स्वैब डीएटीआरआई में दिए हैं ताकि ह्यूमन ल्युकोसाइट एंटीजेन (एचएलए) की पहचान करायी जा सके। वहां पर मुझे एक मिलान मिला और तब मैंने बच्चे के लिए डोनर बनने की इच्छा जतायी। 

मसीलामणि ने कहा कि उन्होंने यह बात अपने पति को बतायी जिन्होंने इससे सहमति जतायी लेकिन अंतिम निर्णय लेना आसान नहीं था। मसीलामणि ने कहा, ‘मेरी सास और ननद ने कहा कि यदि कुछ अनहोनी हो गई तो आपके बच्चों का ध्यान कौन रखेगा?’ 

उन्होंने कहा, ‘अंतत:, मैं अस्थि मज्जा दान करके एक जीवन बचाने के अपने फैसले को लेकर अपने परिवार को राजी करने में सफल रही।’

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